Saturday, July 2, 2011

गर्माहट का स्रोत दूरी

सर्दियों की दोपहर थी। बादशाह अकबर नदी के किनारे टहल रहे थे। उनके साथ उनके कुछ दरबारी तथा बीरबल भी थे । बादशाह नदी के बहते हुए पानी की ओर देखते रहे।


‘‘यह हवा पानी को ठंडा किए जा रही है। पर्वतों की ठंडक लाती है और पानी में मिला देती है।’’ बादशाह ने कहा।


‘‘कौन इस कड़कती ठंड में नदी में उतरेगा?’’ एक दरबारी ने कहा।


‘‘यदि सही इनाम दिया जाए तो हम एक ऐसे आदमी को ढूँढेंगे जो सारी रात नदी में, छाती तक गहरे पानी में खड़ा रहे।’’ बीरबल ने कहा।


‘‘असंभव, जो भी ऐसा करेगा वह ठंड से जकड़ कर मर जाएगा।’’ बादशाह ने कहा।


‘‘शहंशाह, असंभव क्या होता है जिसका प्रयास न किया गया हो।’’ बीरबल अपनी बात पर अड़ा रहा। ‘‘तुम कैसे दृढ़ता से कह सकते हो?’’ बादशाह ने चुनौती देते हुए कहा।


‘‘प्रस्ताव रखकर देखें कि मैं सही हूँ या गलत।’’ बीरबल ने धीमे स्वर में कहा।


दूसरे दिन नगाड़े बजाने वाले नगाड़े बजाते हुए चारों तरफ गए और राजा के आदेश की घोषणा की। ‘‘जो ठंड में सारी रात यमुना नदी में छाती तक गहरे पानी में खड़ा होकर दिखाएगा उसे सौ मोहरें इनाम में दी जाएंगी।’’


एक धोबी ने यह घोषणा सुनी। उसे पैसों की बहुत जरूरत थी। ‘‘एक सौ मुहरें! उनसे मैं अपने सारे कर्ज उतार लूँगा और मेरे पास भी थोड़ा बच जाएगा।’’ उसने अपनी पत्नी से कहा।


‘‘तुम ठंड में जकड़ मृत्यु को भी प्राप्त हो सकते हो।’’ पत्नी ने सावधान करते हुए कहा।


‘‘नहीं, मैं नहीं मरूँगा। मैं बचपन में सर्दियों में रात को नदी में तैरा करता था।’’


उसने अपनी पत्नी की हथेली को बड़े प्यार से दबाकर आश्वासन दिया। ‘‘सोचो एक सौ मोहरें।’’ वह हँसा। दूसरे दिन वह राजदरबार में उपस्थित हुआ। और दरबार के कर्मचारी से कहा कि वह घोषणा सुनकर उपस्थित हुआ है। कर्मचारी उसे बादशाह के समक्ष ले गया।


धोबी ने झुककर धरती को छूकर अदब से सलाम किया, और बादशाह को कहा, ‘‘शहंशाह, मैंने राज दरबार की घोषणा सुनी है। मैं पूरी रात नदी में छाती तक गहरे पानी में खड़ा रहने के लिए तयार हूँ।’’ उसने स्पष्ट स्वर में कहा।


‘‘बहुत खूब’’, बादशाह ने दरबारी कर्मचारी से कहा, ‘‘आवश्यकता अनुसार सारी तैयारी कर दी जाए। दो पहरेदारों की नियुक्ति कर दी जाए जो नदी तट पर रहेंगे और उस पर पूरी नज़र रखेंगे।’’ पहरेदारों को यह तैनाती अच्छी नहीं लगी क्योंकि वे ठंड के इस मौसम में बाहर रहना नहीं चाहते थे। परंतु उनके पास कोई चारा न था। आदेश तो आदेश होता है।


अंधेरा होते ही पहरेदारों ने धोबी को पानी में उतरने का संकेत दिया। उन्होंने स्वयं कई स्वेटर एक के ऊपर एक पहन रखे थे। उन्होंने अपनी तैनाती छप्पर के नीचे ले ली। धोबी ने अपने कपड़े उतारे। उसका शरीर ऐसे कांपा जैसे तूफान में पत्ता कांपता है। थोड़ी देर के लिए उसने सोचा कि वह अपनी जान को जोखिम में डाल रहा है। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। ‘‘सौ मोहरें!’’ उसने अपने आप से कहा।


‘‘एक रात का दुख और सौ मोहरें !’’ यह विचार आते ही उसे बल मिला। वह पानी में चलता रहा जब तक उसे छाती की गहराई तक पानी नहीं मिला।
चौकसी प्रारंभ हुई। यह चॉंदनी रात थी। करोड़ों तारे आकाश में चमक रहे थे। तारों के बीच हंसिए-सा चॉंद चमक रहा था। कड़कती ठंड देह को चीर रही थी। ज्यों-ज्यों रात बढ़ती गई त्यों-त्यों असहनीय ठंड होती गई। धोबी को ऐसा लगा कि रात का अंत ही नहीं हो रहा है।


‘‘ओह! बस सुबह हो जाए!’’ वह बार-बार यही इच्छा करता रहा।


उसने महसूस किया कि यह इच्छा उसे कहीं का नहीं रहने देगी। इस अग्नि परीक्षा का सामना करने के लिए उसे कोई न कोई रास्ता निकालना होगा जो उसे शक्ति दे सके ।उसे अपने मस्तिष्क को कहीं न कहीं लगाना होगा। उसकी नज़र दूर रखी लैंप की लौ पर पड़ी। यह लैंप महल के ऊपर छत पर लगी थी। ‘‘आह!’’ इतनी दूर से भी मानो सचमुच उसे थोड़ी गर्माहट महसूस हुई। लैंप और गर्माहट ने उसके डर को दूर किया और प्रेरणा दी।


वह भूल गया कि पानी कितना ठंडा है। उसे कड़कती ठंड का एहसास तब तक नहीं हुआ जब तक मुर्गे ने बॉंग देकर सुबह होने की सूचना नहीं दी। धोबी ने यह महसूस किया कि अंधकार खत्म हो गया है। उसकी अग्नि परीक्षा खत्म हुई। नदी के किनारे खड़े पहरेदारों ने जोर से चिल्ला कर कहा, ‘‘बाहर आ जाओ, तुम एक सौ मोहरों से धनी हो गए हो।’’ धोबी किनारे पर आ गया, तौलिये से अपना गीला शरीर पोंछा, शीघ्र गर्म कपड़े पहने और पहरेदारों के साथ शाही दरबार में गया।


बादशाह अपने दरबारियों तथा बीरबल के साथ दरबार में आए। ‘‘शहंशाह, यह आदमी सारी रात नदी में छाती तक गहरे पानी में खड़ा रहा।’’ उन्होंने घोषणा की। बादशाह को विश्वास न हुआ। उन्होंने सोचा जरूर इसने कोई चाल चली होगी जिससे ठंड को दूर रखा जा सके। वे आगे की ओर झुके और अपनी गरजती आवाज में बोले, ‘‘मुझे बताओ कि तुमने ठंड को कैसे दूर रखा?’’


‘‘शहंशाह, महल की छत पर लगी लैंप की लौ ने मुझे गर्मी दी।’’ धोबी ने भोले-भाले अंदाज में कहा। ‘‘आह ! लैंप ने तुम्हें गर्माहट दी, देखा जाए तो, तुमने बाहर से मदद ली। यह व्यवहार तुम्हें इनाम लेने का हकदार नहीं बनाता।’’ धोबी का चेहरा मुरझा गया। और बीरबल का भी लेकिन बीरबल ने कुछ नहीं कहा। वह बड़े दुख के साथ देखता रहा। धोबी सर नीचा कर शाही महल से बाहर आ गया। बीरबल ने देखा उस आदमी का चेहरा निराशा में डूब गया। उसे ठंड सहनी पड़ी इस आशा से कि उसे इनाम मिलेगा। क्रूर विधि ने उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया।


बीरबल ने महसूस किया कि धोबी के साथ अन्याय हुआ है। उसने उसी समय प्रतिज्ञा की, वह उसे उसका हक दिलाकर रहेगा। दूसरे दिन, बीरबल ने शाही दरबार को संदेश भेजा, यह कहकर कि घर में कोई जरूरी काम है, इसलिए आज वह दरबार में उपस्थित नहीं हो पाएगा। ‘‘जरूरी काम! बादशाह की सेवा से बढ़कर जरूरी काम क्या हो सकता है?’’ बादशाह अकबर बड़बड़ाया।


कुछेक दरबारी, जो बीरबल से ईर्ष्या करते थे, बड़े खुश हुए।


‘‘उसी समय, बादशाह ने बीरबल को बुलाने के लिए पहरेदार भेजा। पहरेदार दौड़ता हुआ बीरबल के घर आया और उसने बादशाह का संदेश दिया।
‘‘आह!’’ बीरबल ने कहा। ‘‘जाओ और बादशाह से कहो कि मैं खिचड़ी बनाने में व्यस्त हूँ। जैसे ही यह बन जाती है, मैं उनकी सेवा में हाजिर हो जाऊँगा।’’ पहरेदार ने खबर बादशाह अकबर को पहुँचा दी।

‘‘बड़ा मूर्ख है!’’ बादशाह ने गुस्से में जोर से कहा। फिर उन्हें मन-ही-मन थोड़ी बेचैनी हुई।


‘‘वह आदमी जरूर कोई शरारत कर रहा है। चलो, उसे पकड़ा जाए,’’ बादशाह ने भौंहें सिकोड़ कर कहा।


बादशाह शाही घोड़े पर सवार हुए। उनके पीछे उनके दरबारी भी घोड़ों पर सवार हो चल पड़े। शाही कारवॉं जल्दी ही बीरबल के घर पहुँच गया। बीरबल अपने घर के आँगन में ही था। वह सूखी लकड़ियों से आग जला रहा था। उसने काफी ऊँचाई पर लकड़ियॉं बॉंध कर उस पर मिट्टी की हांडी रखी थी। आग तीन फीट परे जल रही थी।


बीरबल ने अपने हाथ में पकड़ी छड़ी फेंक दी और बादशाह की ओर दौड़ा। उसने अपने स्वामी का आदर बादशाह के सामने झुककर तथा धरती को छूकर प्रकट किया? फिर बादशाह के आदेश का इंतजार करने लगा।


‘‘बीरबल, तुम क्या कर रहे हो?’’


‘‘शहंशाह, मैं खिचड़ी बना रहा हूँ। दाल और चावल ऊपर रखी हांडी में है।’’


‘‘लेकिन’’, बादशाह ने ऊँची आवाज में कहा, ‘‘बर्तन के नीचे कोई आग नहीं है?’’


‘‘आग वहॉं है’’, बीरबल ने इशारे से थोड़ी-सी जलती आग को दिखाया, जो तीन फीट दूर थी।


‘‘दाल-चावल कैसे पकेंगे जब तक बर्तन के नीचे आग की गर्मी न हो?’’ बादशाह ने पूछा। बीरबल थोड़ा मुस्कुराया।


‘‘मुस्कुराना कोई उत्तर नहीं है।’’ बादशाह उत्तेजित हो पूछने लगे, ‘‘बताओ खिचड़ी कैसे पकेगी जब आग बर्तन से दूर हो?’’


‘‘शहंशाह, आपने मुझे बताया है कि दूर से भी गर्मी पहुँच सकती है।’’ बीरबल ने अपनी दाढ़ी को खुजलाते हुए कहा। ‘‘तुमने मुझसे सीखा है?’’ बादशाह ने भौचक्के होकर देखा।


‘‘आपने ही मुझे दिखाया है, शहंशाह! आपने कहा कि ठंडे पानी में खड़े धोबी को महल की छत पर जलते हुए लैंप की लौ से गर्मी प्राप्त हुई है।’’ बीरबल ने साफ किंतु धीमी आवाज में कहा।


‘‘अहा’’, बादशाह को अब ख्याल आया कि बीरबल के मन में क्या चल रहा था। बादशाह पहरेदार की ओर मुड़े और कहा, ‘‘जाओ और उस धोबी को पकड़ लाओ। उसे घोषणा के अनुसार इनाम मिलना चाहिए।’’


‘‘शहंशाह, अब न्याय पूरी तरह हो गया है।’’ फिर उसने हांडी के साथ वह सब उस ओर सरका दिया जहॉं आग थी। बीरबल हँसने लगा, बादशाह हँसने लगे, और समस्त दरबारी हँसने लगे। वे भी हँसने लगे जिन्हें बीरबल से ईर्ष्या थी, यह सोचकर कहीं बादशाह उन्हें सजा न दे दें।

No comments:

Post a Comment