
धुन का पक्का विक्रमार्क पुनः पेड़ के पास गया; पेड़ पर से शव को उतारा; उसे अपने कंधे पर डाल लिया और यथावत् श्मशान की ओर बढ़ता हुआ जाने लगा। तब शव के अंदर के वेताल ने कहा, ‘‘राजन्, जिस उदात्त लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, जिस प्रजा के क्षेम के लिए घोर अंधकार की परवाह किये बिना तुम इतना कठोर परिश्रम कर रहे हो, इसका कारण मैं नहीं जानता। परंतु मैंने देखा है कि सामान्य प्रजा के कुशल -मंगल को जिन राजाओं ने अपने जीवन का लक्ष्य माना है, वे भी कभी-कभार स्थायी रूप से शासक बने रहने की आकांक्षा के वशीभूत होकर ऐसे लक्ष्यों को त्यज देते हैं। वज्रपाणि एक ऐसा ही युवक राजा था, जिसने ऐसे प्रलोभन में आकर अपने आदर्शों को तिलांजलि दे दी। उसकी कहानी मुझसे सुनो।'' फिर वेताल यों कहने लगा:
वज्रपाणि गिरिव्रजपुर के शासक उग्रसेन का पुत्र था। बचपन से ही शासन संबंधी विषयों में उसकी विशेष आसक्ति थी। बालिग़ होते-होते उसने सभी क्षत्रियोचित विद्याएँ सीखीं। शासन संबंधी विषयों में वह कभी-कभी अपने पिता को भी मूल्यवान सलाहें दिया करता था। उसके सूक्ष्म परिशीलन, दूरदृष्टि व उम्र से भी बढ़कर उसके ज्ञान-विवेक को देखते हुए उसके पिता भी चकित रह जाते थे। बहुत ही कम समय में उसने ताड़ लिया कि उसका पुत्र असाधारण मेधावी और सर्वसमर्थ है। उसे विश्वास हो गया कि उसके शासन काल में प्रजा सुखी और शासन-व्यवस्था सुचारु रहेगी। इसलिए उसे सिंहासन पर आसीन करके वह विश्राम करने लगा।

राजा बनने के बाद वज्रपाणि ने विश्राम ही नहीं लिया। मंत्री, सेनाधिपति, सेना तथा अन्य उच्च अधिकारियों को राज्य को प्रगति पथ पर ले जाने के लिए उसने प्रोत्साहित किया। किसानों की सुविधाओं के लिए जल का विशेष प्रबंध किया और नये-नये साधनों को मंगवाकर कुटीर उद्योगों की अभिवृद्धि की। सुस्ती को दूर भगाने के लिए हर एक को काम करने का नियम बनाया। यहाँ तक कि उसने कैदियों को भी प्रशिक्षण दिलवाया, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें । इसके लिए उन्हें सीमित आज़ादी भी दी। अकुंठित दीक्षा से काम करके उसने तीन सालों के अंदर ही देश को सुसंपन्न बना दिया। इस निर्दिष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के बाद वह अपने विवाह के बारे में सोचने लगा। चूँकि उसका जीवन लक्ष्य प्रजा क्षेम ही था, इसलिए उसने एक सामान्य स्त्री से विवाह करने का निश्चय किया। उसका समझना था कि इससे वह प्रजा के साथ हिलमिल कर रह सकेगा।
रानी विद्या-विवेक संपन्न हो, इसलिए उसने चाहा कि उसका विवाह एक शिक्षित कन्या से हो। वह चाहता था कि राज्य की युवतियों के लिए एक प्रतिस्पर्धा चलायी जाए और उसमें जो युवती विजेता हो, मेधासंपन्न हो, उससे विवाह करूँ ।
रानी बनने की इच्छा लेकर देश की कई युवतियों ने इन स्पर्धाओं में भाग लिया। स्मरण शक्ति, गणित तथा क्रीड़ाओं में स्पर्धाएँ चलायी गयीं। स्पर्धाओं में अंततः देवयानी, शिवदर्शिनी नामक दो युवतियाँ समान रूप से योग्य घोषित हुईं। इसके बाद इन दोनों के लिए कई परीक्षाएँ चलायी गयीं, पर दोनों समान साबित हुईं। देवयानी अपूर्व सुंदरी थी तो शिवदर्शिनी साधारण रूप-रंग की थी।

इन दोनों में से किसी एक को चुनने की जिम्मेदारी वज्रपाणि ने स्वयं अपने ऊपर ली और उनसे कहा, ‘‘मैं जानना चाहता हूँ कि तुम दोनों में से कौन पराक्रमी है । सात घोड़ों के वीर को पकड़ कर ले आना। देखता हूँ, इसमें कौन सफल होती है ।''
दोनों युवतियाँ क्षण भर सोचती रहीं। फिर वे वहाँ रखी थालियों में पानी भरकर ले आयीं, जिनमें सूर्य का प्रतिबिंब झलकता था। सूर्य सात घोड़ों का वीर है। उसे पकड़कर ले आने का अर्थ होता है, सूर्य के प्रतिबिंब को ले आना।
वज्रपाणि दोनों को कुछ क्षणों तक ध्यान से देखता रहा, तब अचानक उसमें एक संशय जगा। उसने उनसे कहा, ‘‘मुझे पहले जानना है कि तुम दोनों के परिवारों की पृष्ठभूमि क्या है? आप दोनों के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद अंतिम स्पर्धा का आयोजन करूँगा और उसमें जो जीतेगी, उससे विवाह रचाऊँगा।''
यह सुनते ही देवयानी चौंक उठी और कहा, ‘‘माता-पिता कोई भी हो सकते हैं। इससे क्या फर्क पड़ता है? पहले उस अंतिम स्पर्धा को चलाइये।'' राजा ने शिवदर्शिनी को देखा।
‘‘राजधानी की पूरबी दिशा में स्थित रामवर गाँव के किसान परिवार की हूँ। पिता का नाम भूषण और माँ का नाम नागमणि है ।'' शिवदर्शिनी ने कहा। राजा ने देवयानी की ओर मुड़कर कहा, ‘‘तुम अपने माता-पिता का नाम बताने से हिचकिचा रही हो। इसका यह मतलब हुआ कि तुम कोई रहस्य छिपा रही हो।''
‘‘हाँ, इसमें रहस्य अवश्य है। मैं कोशल राज्य की युवरानी देवयानी हूँ। आपको मैं बेहद चाहती हूँ, इसीलिए मैं आपसे विवाह करने यहाँ आयी हूँ। एक राजा होकर एक सामान्य कन्या से आपका ववाह करना मुझे क़तई पसंद नहीं। मेरे प्रेम की जीत हो, इसीलिए मैं बहुरूपिया बनकर आयी हूँ। क्या यह अपराध है?'' देवयानी ने पूछा।
‘‘तुम्हें मालूम ही होगा कि यह स्पर्धा राज्य की केवल सामान्य युवतियों के लिए है। इसमें पड़ोसी राज्य की युवरानी का भाग लेना अनुचित है न?'' राजा ने धीमे स्वर में पूछा।

‘‘आपको मैंने चाहा, आपसे विवाह करने आयी हूँ और सब प्रकार से योग्य भी हूँ। ऐसी राजकुमारी से विवाह करने से इनकार करना क्या उचित है? आपने मेरा तिरस्कार किया, इस अपराध के लिए आपको किसी न किसी दिन मूल्य चुकाना ही पड़ेगा।'' कहती हुई देवयानी वहाँ से तेज़ी से चली गयी। वज्रपाणि उसे देखता रहा। शिवदर्शिनी की भी समझ में नहीं आया कि क्या करूँ, इसलिए वह भी वहाँ से चली गयी।
वज्रपाणि ने इसके पहले देवयानी को कभी नहीं देखा। परंतु उसके बारे में बहुत कुछ सुना था। वह कोसल राज्य के राजा अमरेंद्र की इकलौती बेटी थी। उसके पिता उसे बेहद चाहते थे। अमरेंद्र केवल नाम मात्र के लिए राजा था। जब देखो, तब शतरंज खेलने में ही लगा रहता था। इसलिए शासन का पूरा भार उसकी पुत्री देवयानी ही संभालती थी। वह प्रजा के क्षेम के बारे में बिलकुल ही लापरवाह रहती थी। मंत्रियों की सलाहों पर भी वह ध्यान नहीं देती थी। राज्य में अपराधियों की संख्या बढ़ने लगी और प्रजा दुखी रहने लगी। पर वे लाचार थे।
ऐसी देवयानी ने पड़ोसी राजा वज्रपाणि के शौर्य-पराक्रम, विद्या-विवेक तथा उसके सौंदर्य के बारे में बहुत सुन रखा था। इसलिए वह उससे प्रेम करने लगी। उसने किसी भी हालत में उससे विवाह करने का निर्णय लिया था, इसीलिए वह बहुरूपिया बनकर उस स्पर्धा में भाग लेने आयी। पर, वह पकड़ी गयीऔर अपमानित हुई । लौटने के बाद उसने अपने पिता से रोती हुई पूरा वृत्तांत बताया।
पिता अमरेंद्र, पुत्री के दुख को देख नहीं पाया। कोशल राज्य वज्रपुर से विशाल था। सेना बल में वह कहीं अधिक था। वज्रपाणि पर आक्रमण करना आसान काम था, पर अमरेंद्र यह काम करना नहीं चाहता था। कुछ भी हो, वह अपनी प्यारी बेटी की इच्छा पूरी करना चाहता था। वृद्ध व अनुभवी मंत्री को बुलाकर उसने इस विषय में गंभीर चर्चा की। इसके बाद, उस मंत्री के द्वारा ही वज्रपाणि को उसने एक ख़त भेजा।
वृद्ध मंत्री दूत बनकर दूसरे ही दिन उस ख़त को लेकर गिरिव्रजपुर गया और वज्रपाणि से मिला। वज्रपाणि ने उस ख़त को पढ़ा, जिसमें लिखा था: ‘‘चिरंजीवी वज्रगिरि राज्य के वज्रपाणि को मेरे शुभ आशीर्वाद। आपसे निदेशित नियमों के विरुद्ध चलकर मेरी पुत्री ने अच्छा नहीं किया। इसके लिए मैं क्षमा माँग रहा हूँ। उसके दुर्व्यवहार के लिए भी क्षमा चाहता हूँ। वह आपको बेहद चाहती है, उसके दिल में सदा आप ही रहते हैं, इसीलिए उसने यह साहस किया। पिता होने के नाते मैं चाहता हूँ कि वह सदा सुखी रहे। भला इससे बढ़कर मुझे और क्या चाहिये। उसके प्रेम को स्वीकार करके अगर आप उससे विवाह करेंगे तो हमारा कोशल राज्य आपका अपना हो जायेगा। दोनों राज्यों के आप ही राजा होंगे। यह जानी हुई बात है कि आप विवेक संपन्न हैं, मेधावी हैं। मेरी पुत्री से आप अगर विवाह करेंगे तो मुझे पूरा विश्वास है कि वह सही मार्ग पर चलेगी और उसका जीवन सुखमय होगा, धन्य होगा। मैं शतरंज खेलते हुए, आपके पिता की तरह शेष जीवन शांति से बिताऊँगा।''

वज्रपाणि पत्र को पढ़कर सोच में पड़ गया। दूत द्वारा उसने पत्र भेजा कि देवयानी से विवाह रचाने में उसे कोई आपत्ति नहीं है। शीघ्र ही वज्रपाणि और देवयानी का विवाह संपन्न हुआ। सुविशाल कोशल राज्य को गिरिवज्रपुर से मिलाकर वज्रपाणि दोनों राज्यों का राजा बना।
वेताल ने यह कहानी सुनायी और अपने संदेहों को व्यक्त करते हुए पूछा, ‘‘राजन्, गिरिवज्रपुर के राजा वज्रपाणि ने घोषित किया था कि वह अपना विवाह एक सामान्य कन्या से करेगा। पर, वह अपने वचन से मुकर गया। उसने सामान्य कन्या विजेता शिवदर्शिनी से विवाह नहीं किया, बल्कि उस राजकुमारी देवयानी से किया, जो घमंडी और उद्दंड थी। उसके दुर्व्यवहार को जानते हुए भी उससे विवाह रचाना क्या अनुचित नहीं था? मेरा विचार है कि उसमें राज्य को और विस्तृत करने की आकांक्षा सोयी हुई थी और उसी ने उसे ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया।

अथवा हो सकता है, वह कोशल राज्य के सेना-बल से भयभीत हो गया हो और इस विवाह के लिए अपनी सम्मति दी हो। इनको छोड़कर उसके निर्णय के पीछे क्या कोई दूसरा सबल कारण है? मेरे इन संदेहों के समाधान जानते हुए भी चुप रह जाओगे तो तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे।''
विक्रमार्क ने वेताल को समझाने के उद्देश्य से कहा, ‘‘वज्रपाणि उन आदर्श शासकों में से एक था, जो विश्वास करते हैं कि प्रजा के क्षेम का परिरक्षण करना ही शासक का प्रधान कर्तव्य है। बाल्य काल से ही लेकर उसमें यह भाव बल पकड़ता गया। इसी वजह से उसने रात-दिन एक करके परिश्रम किया। बाकी उसकी दृष्टि में मुख्य नहीं थे। कोशल राज्य के राजा का पत्र पढ़ते ही उस राज्य की प्रजा के कष्ट, उनकी यातनाएँ उसकी आँखों के सामने स्पष्ट दिखने लगे। उसे लगा कि वहाँ की प्रजा के दुख-दर्द को दूर करने के लिए देवयानी से विवाह करना एक अच्छा मौका है। इसी कारण उसने इसके लिए अपनी सम्मति दी। यह कहना ग़लत है कि राज्य को बढ़ाने के उद्देश्य से उसने ऐसा किया। सैन्य बल से भयभीत होनेवालों में से वह नहीं था। देवयानी को उसके पिता ने बड़े लाड़-प्यार से पाला पोसा, इसीलिए उसमें अहंकार घर कर गया। पर यह सच है कि वह वज्रपाणि के लिए उसके दिल में सच्चा प्यार था। अतः इसमें कोई संदेह नहीं कि वह भविष्य में पति का हर प्रकार से साथ देगी, उसे अपना आराध्य देवता मानेगी। अब रही, सामान्य कन्या से विवाह करने की बात। किसी ने भी उसपर ज़ोर नहीं डाला कि वह एक सामान्य कन्या से ही विवाह करता। उसने स्वयं यह निर्णय लिया था। अगर वह शिवदर्शिनी से विवाह करता तो इससे केवल उसका ही भला होता। देवयानी से विवाह करने से पूरे कोशल राज्य की प्रजा का भला होगा। प्रजा क्षेम ही उसका एकमात्र उद्देश्य था और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने यह प्रस्ताव स्वीकार लिया। यह कदापि वचन से मुकरना नहीं है।''
राजा के मौनभंग में सफल वेताल शव सहित ग़ायब हो गया और फिर से पेड़ पर जा बैठा। (आधार सुधीर पांडे की रचना)

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