Saturday, July 9, 2011

कामेश की संगीत सभा

रामेश और कामेश पड़ोसी हैं। गाँव के लोगों का कहना है कि रामेश मिलनसार है, उसके बोलने का तरीक़ा बड़ा ही मीठा होता है और उसकी वाक् पटुता सराहनीय है। किन्तु कामेश का स्वभाव इसके बिल्कुल विपरीत है। जब कभी भी मौक़ा मिलता है, वह रामेश की खिल्ली उड़ाता है, उसपर ताने कसता है और अपने को बड़ा साबित करने की व्यर्थ कोशिश करता रहता है।
एक बार रामेश और कामेश को, बग़ल के गाँव के एक संपन्न भूस्वामी से, उसके बड़े बेटे के विवाह का निमंत्रण-पत्र मिला। दोनों गये। शाम तक विवाह का कार्यक्रम पूरा हुआ। रात को भोजन के बाद संगीत सभा आयोजित हुई।
रात के आठ बज गये, पर वह संगीत विद्वान नहीं आया, जिसे संगीत सभा में गाना था। दुलहे के बाप ने इसके लिए अतिथियों से क्षमा माँगी और कहा, ‘‘बजानेवाले सब तैयार बैठे हैं परंतु गायक अब तक आये ही नहीं।''
दुलहे के रिश्तेदारों में से दो-तीन आदमियों ने दुलहे के पिता से कहा, ‘‘आप चिंता मत कीजिये। यह सौभाग्य की बात है कि यहाँ रामेश और कामेश उपस्थित हैं। हमने सुना कि इन दोनों में से कामेश बड़े ही अच्छे गायक हैं। वे क्यों न गाना गायें?''
अतिथियों ने ज़ोर दिया तो कामेश को गाना ही पड़ा। गाते हुए कामेश को लगा कि उसका स्वर मधुर है और अतिथि इसका मज़ा ले रहे हैं। कुछ लोगों ने उसकी तारीफ़ भी की। पर, रामेश चुप रहा। इस पर कामेश नाराज़ हो उठा।
गाँव लौटने के बाद कामेश अपने संगीत ज्ञान की खुद तारीफ़ करने लगा तो तीन प्रमुख व्यक्ति आगे आये, जिन्होंने अनेक संगीत सभाओं में बाजे बजाये थे और नाम कमाया था।
उनके सहयोग से उसी रात को कामेश की संगीत सभा का प्रबंध हुआ। गाना शुरू करते ही, लोगों को यह जानने में देर नहीं लगी कि कामेश को संगीत का थोड़ा भी ज्ञान नहीं है और वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना ही संगीत समझता है। वे मन ही मन हँसते रहे।

संगीत सभा जब खत्म हुई, कामेश ने कहा, ‘‘सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ त्यागराज को भी मैंने भुला दिया है। मेरे गंधर्व गान पर कृपया अपने-अपने अभिप्राय व्यक्त कीजिये।''
कुछ लोगों ने विवश होकर उसकी झूठी तारीफ़ की। उनमें से वे लोग भी थे, जिन्होंने बाजे बजाये।
परंतु, रामेश को चुप पाकर कामेश ने कहा, ‘‘तुम्हारी चुप्पी शोभा नहीं देती। मैं चाहता हूँ कि इस संगीत सभा पर तुम अपनी राय दो।''
कामेश समझता था कि अगर उसकी तारीफ़ रामेश नहीं करे तो गाँववाले उसे ईर्ष्यालु मानेंगे और उसकी भर्त्सना करेंगे। किन्तु रामेश ने कहा, ‘‘सिर्फ मैं ही नहीं, यहाँ बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्होंने कुछ नहीं कहा। उनकी राय ही मेरी भी राय है।''
रामेश की बातों में जो व्यंग्य छिपा हुआ था, उसे बहुत लोगों ने समझ लिया, इसलिए वे हँसते रहे। कामेश नाराज़ हो उठा और जिद पकडी कि रामेश को अपनी राय बतानी ही पडेगी। रामेश ने उन तीनों बाद्य बजानेवालों की प्रशंसा की और चुप रह गया।
‘‘तुमने तो मेरे गाने के विषय में कुछ भी नहीं कहा,'' कामेश ने पूछा।
‘‘जो बाजे बजा रहे थे, उन तीनों ने तुम्हारे गाने की प्रशंसा की। पर उनमें से किसी ने भी अपने बारे में एक भी शब्द नहीं कहा। इसका मतलब हुआ कि आत्म प्रशंसा करने में तुम्हारी प्रतिभा असाधारण है और वे तीनों उस प्रतिभा से वंचित हैं। जो काम वे नहीं कर सकते, वह काम मैं कर रहा हूँ। मैं उन्हीं की सहायता करता हूँ,जो कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं होते। तुम जैसे योग्यों की सहायता करने की मेरी आदत नहीं है। इसीलिए मैंने तुम्हारी तारीफ़ नहीं की।''
यों कामेश, रामेश के हाथों एक और बार मात खा गया।



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