Saturday, July 2, 2011

बच्ची की रुलाई

अकबर बादशाह की प्रशंसा पाने के लिए आस्थान के कुछ कर्मचारी और प्रमुख अक्सर उनकी तारीफ़ के पुल बांधा करते थे। उनका यह बर्ताव बीरबल को विचित्र लगने लगा और सोचने लगा, ‘ये राजकर्मचारी हैं या उनके पालतू कुत्ते?' उससे उनका यह व्यवहार देखा नहीं गया और उसने एक दिन उनसे यह कह डाला। राजकर्मचारी और प्रमुख भड़क उठे। उन्होंने नाराज़ होकर कहा, ‘‘बीरबल, तुमने हमारा घोर अपमान किया। इसके लिए तुम्हें हमसे माफ़ी माँगनी होगी। अथवा अपनी बात लौटा लो।''
‘‘क्यों?'' बीरबल ने पूछा।
‘‘क्योंकि हम कुत्ते नहीं हैं'', राजकर्मचारियों ने कहा। ‘‘हाँ, हाँ, मैं यह जानता हूँ'', बीरबल ने कहा।
‘‘तो फिर हमारी तुलना कुत्तों से क्यों करते हो?'' राजकर्मचारियों ने क्रोध-भरे स्वर में पूछा।
‘‘कुत्तों की पूँछ होती है। वह आपको नहीं है। यजमान को देखते ही कुत्ते पूँछ हिलाते हैं। राजा को देखते ही आप उनकी तारीफ़ करते हुए जीभ हिलाते रहते हैं। बस, यही एकमात्र फर्क है। वे कोई असंबद्ध बात भी कह दें तो आप लोग, वाह-वाह कहने लगते हैं। उन्हें सातवें आसमान पर बिठा देते हैं।'' बीरबल ने कहा।
‘‘हम जो चाहें, करेंगे। उसपर उंगली उठानेवाले तुम कौन होते हो? मानवों को कुत्ते कहना क्या कहीं उचित है?'' और क्रोधित होते हुए राजकर्मचारियों ने कहा।
‘‘मानता हूँ, तुम सब लोग मानव हो, पर तुम्हारी रीढ़ की हड्डी नहीं है''। बीरबल ने कहा।

‘‘अपनी जीभ काबू में रखो बीरबल'', राजकर्मचारियों ने उसे चेतावनी दी।
‘‘आख़िर मैंने क्या कह दिया, जिसपर तुम लोग इतना नाराज़ हो रहे हो। मेरा कहना यही है कि तुममें हिम्मत नहीं है। यह वास्तविकता है, इसलिए मेरी बात कडुवी लग रही है'', बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘‘अच्छा, हमारी बात रहने दो। क्या तुम हमसे अधिक साहसी हो?'' राजकर्मचारियों ने पूछा।
‘‘निस्संदेह। बताओ, इसे साबित करने के लिए मैं क्या करूँ?'' बीरबल ने पूछा।
‘‘पहले से ही अनुमति लिये बिना क्या तुम बादशाह के बाद देरी से दरबार में आ सकते हो?'' एक कर्मचारी ने पूछा।
बादशाह दरबार में आयें, इसके पहले ही दरबारियों को दरबार में अवश्य उपस्थित रहना चाहिये, यह कानून अमल में था। देरी से आयें, बिना अनुमति लिये न आयें तो बादशाह उन्हें कड़ी सज़ा सुनाते थे । यह विषय बीरबल बखूबी जानता था। क्षण भर के लिए उसे डर भी लगा कि इस अपराध के लिए उसे पता नहीं, क्या सज़ा भुगतनी होगी। किन्तु उसे मालूम था कि डरनेवाला कुछ नहीं कर सकता। इसलिए वह सोच में पड़ गया कि इस दंड से कैसे बच निकलूँ। उसने साहस बटोरकर राजकर्मचारियों से कहा, ‘‘ठीक है, कल बादशाह जब दरबार में आयेंगे, तब मैं दरबार में नहीं रहूँगा। पहले से ही अनुमति लिये बिना अनुपस्थित रहूँगा।''
दरबारी मन ही मन इस बात पर खुश होने लगे कि इस बार अवश्य ही बीरबल हार जायेगा और उसे कड़्री सज़ा मिलेगी। आगे से बादशाह उसकी इज्ज़त भी नहीं करेंगे।
दूसरे दिन बादशाह जब दरबार में आये तब बीरबल के सिवा बाकी सभी दरबारी मौजूद थे। वे अपने-अपने आसनों पर बैठे हुए थे। बादशाह के आते ही वे सब उठ खड़े हुए और झुककर उन सबने उन्हें सलाम किया।
बादशाह ने पूरी सभा को सरसरी नज़र से देखा और कहा, ‘‘बीरबल कहाँ है? क्या किसी के द्वारा ख़बर भेजी कि वह आ नहीं सकता?''

एक अधिकारी ने कहा, ‘‘नहीं प्रभु।'' ‘‘बिना इज़ाज़त के घर पर ही रह जाने की उसकी यह हिम्मत ! सिपाही को भेजिये और तुरंत उसे बुलवाइये'', बादशाह ने हुक्म दिया।
बीरबल के यहाँ गया हुआ सिपाही एक घंटे के बाद लौट आया और कहा, ‘‘प्रभु, बीरबल ने कहला भेजा है कि बच्ची की रुलाई बन्द हो जाने पर वे अवश्य आयेंगे।''
‘‘मेरी ही आज्ञा की उपेक्षा! बच्ची की रुलाई को रोकना क्या इतना कठिन काम है? मैंने तो समझ रखा था कि बीरबल अ़क्लमंद है और हर समस्या के परिष्कार को ढू़ढने में सक्षम है'', अकबर ने आवेश-भरे स्वर में कहा।
क्षण भर के लिए दरबार में चुप्पी छा गयी। ‘‘बीरबल को तुरन्त यहाँ हाज़िर किया जाये। आने से इनकार कर दें तो उनके हाथ-पैर बांधकर ले आना'', बादशाह ने हुक्म दिया।
थोड़ी देर बाद वहाँ आये बीरबल को बादशाह ने नख से शिख तक गौर से देखा।
‘‘बादशाह माफ़ करें। हमारी तीन साल की बेटी सबेरे से लेकर रो रही है। चुप होने का नाम ही नहीं ले रही है। इसी वजह से मैं नहीं आ पाया। अब भी वह रो रही है।'' बीरबलने कहा।
‘‘तुम जैसे अ़क्लमंद आदमी को बच्ची को चुप करना, उसे रोने से रोकना क्या कोई बड़ी बात है?'' व्यंग्य-भरे स्वर में बादशाह ने पूछा। सभी सभिकों को लगा कि बीरबल फंदे में फंस गया और इससे बाहर निकल नहीं पायेगा। वे एक-दूसरे को देखने लगे और मुस्कुराने लगे।
‘‘वहाँ की हालत का बयान करूँगा तो मेरी स्थिति का आप अंदाजा लगा सकेंगे।'' धीमे स्वर में बीरबल ने कहा। अकबर ने आतुरता भरे स्वर में कहा, ‘‘बताओ।''
‘‘बच्ची गाश्ना माँगने लगी और रोने लगी। मैंने लाकर दिया, फिर भी वह रोती रही। मैंने पूछा, ‘‘कहो, तुम्हें और क्या चाहिये?'' उसने गे का रस माँगा। गे का रस निचोड़कर मैंने उसे एक गिलास में दिया। उसने गिलास ज़मीन पर पटक दिया और कहा, ‘‘उस रस को गिलास में भरकर दो।'' ‘‘जो रस ज़मीन पर था, उसे भला फिर से कैसे गिलास में भर सकता हूँ? इसीलिए दरबार में समय पर नहीं आ सका'', बीरबल ने कहा।

‘‘बच्ची की रुलाई न रोक सकनेवाले तुम मेरे सलाहकार कैसे बने रह सकते हो बीरबल'', अकबर ने आश्चर्य-भरे स्वर में पूछा।
‘‘बच्चों का नटखटपन ऐसा ही होता है प्रभु। क्या आपने कभी रोते हुए बच्चों की रुलाई को रोकने का प्रयत्न किया प्रभु?'', बीरबल ने पूछा।
‘‘नहीं'', बादशाह ने कहा।
‘‘आप कोशिश करके देखिये। समझिये, आप बड़े हैं और मैं बच्चा हूँ। आप मुझे हँसाकर देखिये तो सही।'' बीरबल ने कहा।
‘‘क्षण भर में हँसा सकता हूँ'', अकबर ने विश्वास के साथ कहा। बीरबल छोटे बच्चे की तरह ज़मीन पर लेट गया और हाथ-पाँव हिलाते हुए रोने लगा।
बादशाह उसके पास आये और कहने लगे, ‘‘रोना मत मेरे बच्चे। कहो, तुम्हें क्या चाहिये?'', प्यार से उन्होंने पूछा।
‘‘मुझे सोने की अंगूठी चाहिये'', बच्चे के कंठ स्वर में बीरबल ने कहा।
अकबर ने अपनी उंगली में से अंगूठी निकाली और बीरबल को दिया। उसे लेने के बाद बीरबल फिर से रोने लगा।
‘‘अंगूठी दी, फिर भी क्यों हो रहे हो'', बादशाह ने पूछा।
‘‘मुझे एक हाथी चाहिये'', बीरबल ने रोते हुए कहा। अकबर ने एक छोटा हाथी मँगवाया। फिर भी बीरबल हाथ-पाँव मारते हुए रोने लगा।
‘‘और क्या चाहिये'', बादशाह ने पूछा।
‘‘वह हाथी अंगूठी में से निकले'', कहते हुए बीरबल रोने लगा।
अकबर ने नाराज़ होते हुए कहा, ‘‘यह नामुमकिन है।'' ‘‘गे का रस जो ज़मीन पर गिर गया, उसे गिलास में कैसे भर सकता हूँ प्रभु'', मुस्कुराते हुए बीरबल उठकर खड़ा हो गया।
अकबर भी अपनी हँसी को रोक नहीं पाये। उन्होंने कहा, ‘‘हाँ बीरबल, मानता हूँ कि बच्ची की रुलाई को रोकना मुश्किल काम है। अब जान गया हूँ कि तुम देरी से क्यों आये।'' कहते हुए वे सिंहासन पर बैठ गये।
जिन राजकर्मचारियों ने बीरबल को चुनौती दी, उनकी ओर बीरबल ने देखा। जो उसे मुसीबत में फंसाना चाहते थे, शर्म के मारे उन्होंने सिर झुका लिया और यों उन्होंने अपनी हार मान ली।




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