
कर्मपुर के राजा बोपदेव के केवल दो पुत्रियाँ थीं, दोनों जुड़वीं राजकुमारियाँ थीं। उनमें से एक गोरी थी जिसका नाम श्वेता था। दूसरी लड़की काली थी, उसका नाम कृष्णा था। रंग में अंतर होने पर भी दोनों की रूप-रेखाएँ समान थीं। दोनों लाड़-प्यार में पलीं, धीरे-धीरे दस वर्ष की हो गईं।
एक दिन श्वेता उद्यान में टहल रही थी, तब एक पेड़ पर से पक्षियों का एक घोंसला नीचे आ गिरा। दोनों कन्याएँ डर कर ज़ोर-शोर से रोने लगीं। उनका रोना सुनकर परिचारिकाएँ दौड़ी दौड़ी आ गईं । उन लोगों ने पक्षियों का घोंसला देखा। उसमें दो अण्डे थे। परिचारिकाओं ने अण्डों सहित उस घोंसले को चमेली के पौधों की झाड़ी में फेंक दिया और राजकुमारियों को साथ लेकर राजमहल के भीतर चली गईं। मगर डरने की वजह से राजकुमारियाँ बुखार का शिकार हो गईं। इलाज कराने पर भी बुखार नहीं उतरा।
एक दिन रात को राजा ने एक विचित्र सपना देखा। उस सपने में राजा ने पाँच रंगोंवाले एक पक्षी को देखा। उस पक्षी ने मानव की बोली में राजा से यों कहाः
‘‘राजन! मैं देव पक्षी हूँ। मैंने आप के बगीचे में एक पेड़ पर घोंसला बनाकर उसमें दो अण्डे दिये। उन्हें सेंककर उन पक्षियों को मैंने आप की राजकुमारियों को भेंट करना चाहा। मगर आप की मूर्ख परिचारिकाओं ने उन अण्डों को चमेली की झाड़ियों में फेंक दिया है।''
‘‘मैं अभी उन अण्डों को ढूँढवाकर मँगवा देता हूँ।'' राजा ने जवाब दिया।
‘‘अब यह संभव नहीं है। उन अण्डों का फूटना तथा उनमें से बच्चों का उड़ जाना एक साथ हो गया है। वे दोनों छोटे पक्षी इस व़क्त आप के राज्य के पश्चिमी पहाड़ की चोटी पर हैं। तुम खुद उस चोटी पर चढ़ जाओ, उन पक्षियों को लाकर उन्हें स्वादिष्ट खाना खिलाओ। यदि वे प्रसन्न हो गये तो तुम्हें दो अण्डे देंगे। पाँच साल बाद वे अण्डे रत्नों में बदल जायेंगे। उन पक्षियों को वापस लाते ही तुम्हारी लड़कियों का बुखार जाता रहेगा।'' पक्षी ने कहा।
‘‘उस पहाड़ की चोटी सीधा है। उस पर चढ़ना असंभव है। आज तक कोई भी उस चोटी पर चढ़ा न होगा।'' राजा ने उत्तर दिया।
उसके ऊपर पहुँचते ही दो सैनिकों ने रस्से को खींचकर पकड़ा, झट गोह चट्टान से चिपक गई, दो व्यक्तियों ने रस्सी पकड़ कर खींचा, फिर भी गोह ने अपनी पकड़ ढीली नहीं की। इसके बाद राजा भगवान का स्मरण कर उस रस्सी को पकड़ ऊपर चढ़ गया।

‘‘मैं यह नहीं जानता कि तुम उस पर कैसे चढ़ पाओगे? मगर यह बात सच है कि तुम जब तक उन पक्षियों को न लाओगे, तब तक तुम्हारी लड़कियों का बुखार नहीं उतरेगा! सुनो, एक बात और है। अण्डे जब रत्नों में बदल जायेंगे, तब उनमें से एक सफ़ेद होगा, दूसरा गुलाबी रंग का होगा। श्वेता नामक लड़की को गुलाबी रंग के रत्न को हाथ में लेना होगा। कृष्णा सफ़ेद हीरे को ले। ऐसा न हो तो दोनों के लिए ख़तरा पैदा होगा।'' यों समझाकर पक्षी गायब हो गया।
राजा बोपदेव नींद से जाग पड़ा। रानी को अपने सपने का वृत्तांत बताया।
दूसरे दिन प्रातःकाल राजा ने अपने मंत्रियों को बुला भेजा, उनके सामने सपने का वृत्तांत रखा। पर मंत्री कोई सलाह दे न पाये। इस पर राजा ने मंदिर में जाकर भगवान से प्रार्थना की।
अचानक भगवान की मूर्ति के नीचे से एक गोह बाहर आयी, दीवार पर रेंगकर, पुनः उतर आयी और राजा के निकट आकर खड़ी हो गयी।
इस पर राज पुरोहित ने कहा, ‘‘महाराज, भगवान ने आप के प्रति अनुग्रह करके आप की सहायता के लिए गोह को भेज दिया है।''
‘‘यह मेरी सहायता कैसे कर सकेगी?'' राजा ने पूछा।
‘‘उसी ने स्वयं मार्ग दिखाया! दुर्ग की दीवारों को पार करने में गोह से बढ़कर कोई दूसरा प्राणी काम नहीं दे सकता। उसकी पकड़ अनुपम होती है। उसकी कमर में रस्सी बांधकर पहाड़ की चोटी पर भेज दें, तो आप उस रस्सी को पकड़ कर निर्भय ऊपर चढ़ सकते हैं।''
राज पुरोहित ने युक्ति बताई। फिर भी सुरक्षा की दृष्टि से चोटी के नीचे मज़बूत जाल बिछाये गये ताकि राजा के गिरने पर चोट न आवे। गोह को शक्तिशाली भोजन खिलाया गया। एक दिन सवेरे राजा अपनी तलवार, खाना तथा पानी लेकर पहाड़ की ओर चल पड़ा। गोह की कमर में हल्की व मजबूत रस्सी बांध दी गई और उसको पहाड़ की चोटी पर भेज दिया गया।

नीचे राजा का परिवार और रानी डरते हुए खड़े रहे ।
राजा जब चोटी पर पहुँचा तब सूर्यास्त हो रहा था, फिर चन्द्रमा निकल आया। राजा ने रस्सी को गोह की कमर से खोल दिया और उसकी एक छोर को एक मजबूत चट्टान से बांध दिया। चांदनी में राजा को एक नाटा पेड़ दिखाई दिया। उसके निकट जाने पर पेड़ पर दो पक्षी दिखाई दिये। उस पेड़ के तने से दो सिरोंवाला एक सर्प लिपटा हुआ था। राजा को देखते ही अपने दोनों फणों को फैलाये मुँह खोले वह सर्प आगे बढ़ा। राजा ने एक ही वार से साँप को मार डाला। साँप नीचे गिर गया।
बोपदेव जब पक्षियों तथा गोह को लेकर चोटी से उतर कर नीचे आया, तब तक सवेरा होने को था। गोह को नीचे उतारते ही विचित्र ढंग से उसने अपने पंख फैलाये और आसमान में उड़ गया।
पक्षियों के साथ राजा के महल में प्रवेश करते ही राजकुमारियों का बुखार उतर गया। दूसरे दिन पक्षियों ने दो अण्डे दिये और गायब हो गये।
राजा ने उन अण्डों को एक चांदी की टोकरी में रखवाकर लोहे की पेटी में बंद किया।
क्रमशः पाँच साल बीत गये। श्वेता और कृष्णा पंद्रह साल की हो गईं। राजा ने लोहे की पेटी खोलकर देखा तो उसमें से कांति की किरणें फूट पड़ीं। अण्डों की जगह दो रत्न चमक रहे थे। एक सफ़ेद था और दूसरा गुलाबी रंग का रत्न था।
राजा ने जिस व़क्त उन्हें बाहर निकलवाया, उस वक्त राजकुमारियाँ भी वहाँ पर उपस्थित थीं।
राजा ने अपनी पुत्रियों से कहा, ‘‘बेटियो, ये रत्न तुम्हीं लोगों के लिए हैं। इनसे तुम्हारी क़िस्मत खुल जाएगी। तुम यह चिंता न करो कि कौन-सा रत्न किसका है। आज शाम को तुम दोनों को सफ़ेद चंपा के फूल सुराही में रखकर दूँगा। तुम रोज उन फूलों का परिशीलन करते जाओगी तो तुम्हें ख़ुद मालूम हो जाएगा कि उन में से कौन सा रत्न किसका है?''

उसी दिन राजा ने दरबारी जादूगर मायापाल को गुप्त रूप से अपने रहस्य कक्ष में बुला भेजा और कहा, ‘‘मायापाल! रत्न आ गये हैं, अब तुम्हें अपने जादू का प्रयोग करना होगा।''
‘‘महाराज!'' यह कार्य भी आप ही कर सकते हैं न? यह कोई कठिन कार्य थोड़े ही है? श्वेता को दिये जानेवाले सफ़ेद चंपा के पुष्प-पात्र में थोड़ी लाल स्याही मिलाकर इस तरह बिठाइए जिससे फूल की नली उसमें डूबी रहे।
धीरे-धीरे पुष्प की पंखुड़ियाँ अपने आप गुलाबी रंग में बदल जायेंगी। प्रयोग की यह विधि मैंने आप को पहले ही बता दी है।'' मायापाल ने समझाया।
‘‘तुमने तो बताया है, फिर भी यह कार्य तुम्हारे हाथों द्वारा हो जाये तो अच्छा होगा।'' राजा ने कहा। इस पर दोनों हँस पड़े।
उस दिन रात को श्वेता तथा कृष्णा को दो गुच्छे सफ़ेद चंपा के फूल पात्रों के साथ प्राप्त हुए। पात्रों पर दोनों के नाम स्पष्ट रूप से अंकित थे। दोनों ने उन पात्रों को अपने-अपने कमरों में रख लिया और पुष्पों की निगरानी करती रहीं। कृष्णा को जो फूल दिये गये, वे पहले ही जैसे सफ़ेद रह गये, लेकिन श्वेता को दिये गये फूल दूसरे दिन से अपने रंग बदलने लगे। और अन्त में गुलाबी हो गये।
यह ख़बर मालूम होते ही राजा बोपदेव बहुत प्रसन्न हुआ और बड़ी शीघ्रता से अपनी पुत्रियों के यहाँ गया और पूछा, ‘‘बेटियो, अब तुम्हें मालूम हो गया है न कि कौन-सा रत्न किसका है?'' इन शब्दों के साथ राजा ने थाली में स्थित रत्न दिखाये। श्वेता ने गुलाबी रंग के रत्न को अपने हाथ में लिया तो कृष्णा ने सफ़ेद रत्न को।
अब मायापाल की बात रही। राजा से उसको बढ़िया पुरस्कार प्राप्त हुआ।

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