रामेश और कामेश पड़ोसी किसान हैं। गाँव में सब लोग रामेश को शब्दों का मांत्रिक कहा करते हैं। उसकी हर बात में कोई न कोई विलक्षणता होती है। कामेश की तीव्र इच्छा है कि रामेश को हराऊँ और लोगों की प्रशंसा पाऊँ। परंतु जब कभी भी उसने इस दिशा में प्रयत्न किया, हारता ही रहा।
उस साल उस गाँव के मंदिर में गाँव के प्रमुख श्रीराम नवमी के उत्सव को लेकर चर्चा करने लगे। रामेश जो भी सलाहें देता था, उनका खंडन भीमेश नामक आदमी करने लगा। अब रामेश ने कोई सलाह न देने का निश्चय कर लिया।
कामेश ने सहानुभूति दिखाते हुए कहा, ‘‘क्या बात है रामेश? सलाह देना बंद क्यों कर दिया?''
‘‘जहाँ हमारी स्थिति हमारे अनुकूल नहीं, वहाँ चुप रहने में ही भलाई है,'' रामेश ने कहा।
‘‘तेरी बात कोई मान नहीं रहा इसलिए नाराज़ हो गये?'' कामेश ने उसे भड़काते हुए कहा।
‘‘ग़रीब की नाराज़ी उसे ही हानि पहुँचाती है,'' रामेश ने कहा।
‘‘समझ गया। तुम्हारा बड़प्पन कोई मानने के लिए तैयार नहीं है, इसलिए क्या सीताराम के विवाहोत्सव में भी भाग नहीं लोगे?'' ‘‘भगवान के विवाह पर कौन छोटा और कौन बड़ा। सब समान हैं।'' रामेश ने कहा।
‘‘सबको समान मानते हो? हर कोई पालकी में बैठे तो ढोयेगा कौन?'' कामेश ने इस कहावत का उपयोग करते हुए प्रशंसा पाने के उद्देश्य से सबकी ओर देखा। रामेश ने तुरंत कहा, ‘‘तेरा जैसा कोई न कोई तो होगा ही।'' उसकी बात पर सब ठठाकर हँस पडे। कामेश का चेहरा फीका पड़ गया।

No comments:
Post a Comment