Friday, July 1, 2011

सोचा कुछ हुआ और !

अनंत शास्त्री देर तक दरवाज़े पर दस्तक देता रहा, तब उसकी पत्नी अरुंधती जंभाइयाँ लेती हुई आई, दरवाज़ा खोलकर चबूतरे पर खड़ी हो आसमान की ओर देखती बोली, ‘‘आप इतनी रात बीते क्यों आये?''
उस दिन सवेरे घर से निकलते व़क्त अनंत शास्त्री अपनी औरत को यह कहकर गया था कि वह दूसरे दिन ही लौटेगा।
‘‘मेरा काम जल्दी पूरा हो गया। इसलिए मैं किराये की गाड़ी में चल पड़ा। आधे रास्ते में गाड़ी कीचड़ में धंस गई। वहाँ से पैदल चलकर आया, इसलिए देरी हो गई।'' यों कहते वह खीझकर घर के अन्दर चला गया।
अनंत शास्त्री हाथ-मुँह धो रहा था। तब अरुंधती वहाँ पहुँचकर बोली, ‘‘आज शाम को जानकी राम की पत्नी झगड़ा करके चली गई। कह रही थी कि हमारी बिल्ली ने उनके घर का दूध पी लिया है। इसलिए आपके लौटने के बाद अपने पति से कहकर आपका सर फोड़वा देगी।''
अनंत शास्त्री के पिछवाड़े की तरफ़ जानकी राम का परिवार रहता था। उन दो परिवारों के बीच इधर कई दिनों से दुश्मनी चली आ रही थी।
‘‘अरी जानकी, राम की डींगों की तुम परवाह क्यों करती हो? पहले तुम मुझे खाना तो परोसो।'' अनंत शास्त्री ने समझाया।
अरुंधती चौंक पड़ी। जो रसोई बनी थी, सारी वह सफाचट कर गई थी। घर में तरकारियाँ भी बची न थीं।
यह ख़बर सुनाकर बोली, ‘‘मैंने नहीं सोचा था कि आप आज ही रात को घर लौट आयेंगे, पर अब आप ही बताइये कि क्या किया जाये?'' ये बातें सुन अनंत शास्त्री झल्ला उठा। वह बड़ी दूर पैदल चलकर आया था, इस वज़ह से उसे जोर की भूख लगी थी।

‘‘अरी, पाव भर चावल जल्दी बना दो, अचार के साथ खा लूँगा।'' अनंत शास्त्री खीझकर बोला।
अरुंधती संकोच करती बोली, ‘‘छोटी झारी में जो अचार था, वह चुक गया है, बड़ी झारी तो अटारी पर है। उसे उतारना हो तो इस अंधेरे में बिच्छू-साँप काट दे तो क्या होगा? पिछवाड़े में तरकारी है, तोड़ लाइये। इस बीच मैं चावल बना दूँगी।''
लाचार होकर अनंत शास्त्री पिछवाड़े में गया, वहाँ पर अंधेरा छाया हुआ था। वह आदत के मुताबिक़ तरकारी की क्यारी में गया। उसके पैर के नीचे कोई मुलायम चीज़ लगी। शास्त्री ने चौंक कर ध्यान से देखा, वह बिल्ली की बच्ची थी।
इधर चार दिन पहले अनंत शास्त्री की बिल्ली ने चार बच्चे दिये थे, उनमें से सफ़ेद रंग की बिल्ली उसके पैरों के नीचे दबकर मर गई है।
तब उसका कलेजा कांप उठा। वह सोचने लगा कि बिल्ली को मारने का पाप लगेगा। पाप का प्रायश्चित करने के पीछे उसका दीवाला पिट जाएगा। ऐसी बातों में अरुंधती बड़ी सख्त रहती है! इसलिए उसने सोचा कि चुपचाप उसे गाड़ दें पर कुछ हद तक तो प्रायश्चित हो जाएगा।
अरुंधती उस व़क्त रसोई घर में थी। इसलिए उसने बिना ज़्यादा आहट किये कुदाल से गड्ढा खोदा, बिल्ली की बच्ची को उसमें दफ़नाकर तरकारी तोड़ करके अनंत शास्त्री चुपचाप घर के भीतर चला गया।
‘‘तरकारी तोड़ने में आप को इतनी देर लगी? मुझसे कहते थे कि मिनटों में रसोई बना देनी है?'' यों ताने देते अरुंधती ने तरकारी बनाई।
पर हुआ क्या, रात के व़क्त पिछवाड़े में कोई आहट होते सुनकर जानकी राम की पत्नी पिछवाड़े में चली आई। शास्त्री को क्यारी में गड्ढा खोदते देख वह अचरज में आ गई। जब शास्त्री अपने घर के अन्दर चला गया, तब जानकी राम की पत्नी अपने कमरे में पहुँची और अपने पति को थपथपा कर जगाया।
‘‘इस आधी रात को तुमने मेरी नींद हराम कर दी। ऐसी कौन सी आफ़त आ पड़ी है?'' यों कहते जानकी राम आँखें मलते उठ बैठा।

‘‘उठ जाओ। हमारा घर भरने वाला है! अनंत शास्त्री ने क्यारी में गड्ढा खोदकर सोना या धन गाड़ दिया है। गाँव में चोरों का बड़ा दबदबा है न! शास्त्री के सोते ही तुम चुपचाप दीवार फांदकर उस धन को खोद लाओ। इस तरह से हम उनको अच्छा सबक़ सिखलायेंगे।'' जानकी राम की पत्नी ने सुझाया।
धन की बात सुनते ही जानकी राम की नींद का नशा उतर गया। अनंत शास्त्री ने जो कुछ गाड़ रखा था, उसे खोद कर ले आने के लिए एक छोटी-सी पेटी के साथ चल पड़ा। दीवार फांदकर उसने गड्ढे के निशान को जल्दी पहचान लिया। वह कुदाल से उस जगह को खोदने जा रहा था, तभी उसके कंठ पर कोई ठंडी चीज़ सी लगी। वह चौंक पड़ा, सर उठाकर देखता क्या है, काले वस्त्रों में भयंकर लगने वाला चोर खड़ा हुआ है!
‘‘मेहनत के साथ गड्ढा खोदकर धन छिपाने के लिए तक़लीफ़ क्यों उठाते हो? वह पेटी मेरे हाथ देकर अपनी मेहनत से बच जाओ!'' चोर ने कड़क कर कहा।
चोर को देखने पर जानकी राम के हाथ-पाँव सुन्न हो गये, मगर उसका दिमाग तेजी के साथ हरकत करने लगा। उसने सोचा कि चोर इस घर को मेरा मानता है और यह सोचता है कि मैं अपना धन छिपाने जा रहा हूँ! इस मौक़े का लाभ उठाकर चोर अनंत शास्त्री से घर लुटवाना है।
जानकी राम खाली पेटी खोलकर चोर को दिखाते हुए बोला, ‘‘मेरी पत्नी ने इस पेटी के अटने लायक़ गड्ढा खोदने को बताया है। वह अपने सारे गहने लाकर इसमें डाल देगी। तुम दरवाज़ा खटखटाकर उसको पुकारो। उसके सारे गहने ले जाओ, लेकिन मेरे साथ सख्ती न करो।''
‘‘क्या मेरी आवाज़ सुनकर तुम्हारी औरत दरवाज़ा खोलेगी? तुम अपनी औरत को पुकारो। उसके बाद बाहर आने पर गहनों की बात मैं सोच लूँगा।'' यों कहते चोर ने जानकी राम की गर्दन थाम ली और उसे शास्त्री के पिछवाड़े के द्वार तक खींच ले गया।
इस पर जानकी राम के मन में चोर का डर जाता रहा, वह ख़ुशी में आकर जोर से चिल्ला उठा, ‘‘अरुंधती, जल्दी यहाँ पर आ जाओ।''
चोर ने सोचा कि दरवाज़ा खुलते ही जानकी राम अपनी पत्नी को कोई इशारा करेगा, इसलिए वह जानकी राम को थोड़ा हटाकर खुद दरवाज़े के समीप खड़ा हो गया। इसके बाद जानकी राम ने एक बार और ऊँची आवाज़ में अरुंधती को पुकारा।

अरुंधती तो जागी नहीं, पर शास्त्री जाग उठा। आधी रात को किसी को पुकारते देख उसे बड़ा गुस्सा आया। तभी उसे याद आया कि जानकी राम की पत्नी अपने पति से उसका सर फोड़वाने की धमकी दे चुकी है।
इस पर शास्त्री दांत पीसते लाठी लेकर चुपचाप किवाड़ के पास पहुँचा, दरवाज़ा खोलकर वहाँ पर खड़े चोर को ही जानकी राम समझकर उसके सर पर लाठी जमा दी।
चोर चकरा कर नीचे गिर पड़ा।
जानकी राम इस घटना को देख डर गया। उसने सोचा कि गुस्से में आने पर शास्त्री कुछ भी कर सकता है, ऐसे व्यक्ति के साथ दुश्मनी बढ़ाने के बदले दोस्ती कर लेना अच्छा होगा।
यों विचार कर अपनी खुशी ज़ाहिर करते हुए जानकी राम बोला, ‘‘शाबाश ! शास्त्रीजी! डाकू को तुमने एक ही मार से गिरा दिया ! अगर इसके बारे में गाँव के मुखिया को बतायें तो तुमको उनसे ज़रूर बहुत सारा इनाम मिल जाएगा।''
इस बार शास्त्री ने जानकी राम की ओर लाठी का निशाना बनाकर धमकी देते हुए गरजकर कहा, ‘‘अरे दुष्ट, तुम अपनी चिकनी-चुपड़ी बातें मुझे मत सुनाओ, बताओ, तुम जिसे डाकू मानते हो, उसके पीछे मेरे पिछवाड़े में क्यों आये हो?''
जानकी राम कांपते हुए सारी बातें सुनाकर बोला, ‘‘शास्त्रीजी, यह मत पूछो कि मैंने ऐसा क्यों किया है। इसी को कहते हैं कि अ़क्ल चरने गई थी। मुझे माफ़ कर दो। आज से हम दोनों पुरानी दुश्मनी को भूल जायेंगे।''
इसके बाद जानकी राम के कहे मुताबिक़ एक नामी डाकू को पकड़वाने के एवज में गाणँव के मुखिया ने शास्त्री को सौ रुपये का इनाम दिया।
ये सारी बातें अपने पति के मुँह से सुनकर अरुंधती हँसकर बोली, ‘‘बिल्ली की वह बच्ची कल शाम को किसी बीमारी से मर गई थी। मैंने सोचा कि सवेरा हो जाने पर नौकर से गड्ढा खुदवा कर उसे गड़वा दूँगी। उसी से आप को इनाम मिला और आपका दुश्मन दोस्त हो गया, क्या मरी बिल्ली को गाड़ने का पुण्य कभी व्यर्थ हो सकता है?''



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