Saturday, July 2, 2011

अपराध - दण्ड

कोतवाल संगमेश्वर एक दिन शाम को घोड़े पर नगर की गलियों में घूम रहा था तो उसने देखा कि चार लोग एक युवक को पीट रहे हैं। उन्होंने उनसे पूछा, ‘‘इसे क्यों पीट रहे हो?''
‘‘इसने परमेश्वर सेठ की दुकान में चोरी की है,'' उन चारों में से एक ने कहा।
‘‘यह चोरी करे तो इसे पीटने का अधिकार तुम्हें किसने दिया?'' कोतवाल ने पूछा।
‘‘चोरी अपराध है न? इसीलिए हमने इसे पीटा'', धीमे स्वर में एक ने कहा।
‘‘अपराधियों को पहरेदारों के हवाले करना चाहिये। सुनवाई होनी चाहिये। जुर्म साबित हो तो सज़ा होगी। न्यायाधिकारी का काम तुम लोग कैसे कर सकते हो?'' फिर कोतवाल ने पहरेदारों को बुलाया और अपराधी के साथ उन लोगों को भी थाना ले जाने की आज्ञा दी।
दूसरे दिन कोतवाल ने न्यायाधिकारी के सामने उन चारों को खड़्रा किया।
न्यायाधिकारी ने युवक से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?'' ‘‘वीर'', युवक ने कहा।
‘‘तुम पर आरोप है कि तुमने परमेश्वर सेठ की दुकान से चावलों के एक बोरे की चोरी की। क्या यह सच है?'' न्यायाधिकारी ने पूछा।
‘‘महोदय, मैंने एक हफ़्ते तक परमेश्वर की चहारदीवारी को बनाने का काम किया। यह उनके बताने पर ही काम किया कि हफ्ते भर का काम करने पर चावल का एक बोरा दूँगा। इसीलिए मैंने यह काम पूरा किया। इस बीच उन्होंने कहा, ‘पिछवाड़े में जो कुआँ है, उसके चारों ओर की दीवार गिरने ही वाली है। उस पुरानी दीवार को गिरा दो और नयी दीवार बना दो। उसके निर्माण में दो दिन लगेंगे।' मैंने उनसे कहा कि स्वग्राम जाकर दो दिनों में लौटूँगा और जो काम किया, उसकी मज़दूरी के लिए पहले दिये गये वचन के अनुसार एक बोरा चावल पहले दे दीजिये।

‘‘परमेश्वर ने चावल का बोरा देने से इनकार कर दिया। इसपर मैं नाराज़ हो उठा और जब मैं दुकान से एक बोरा चावल लेकर जाने लगा तो वह ‘चोर चोर' ज़ोर से चिल्लाया। ये चारों मिलकर मुझे पीटने लगे तो कोतवाल ने मुझे इनसे छुड़वाया'', यों वीर ने विवरण दिया।
‘‘परमेश्वर सेठ, तुमने वीर का कहा सुना है न?, यह जो कह रहा है, क्या वह सच है?'' न्यायाधिकारी ने पूछा।
‘‘मेरी दुकान से एक बोरे चावल की इसने चोरी की, यह सच है'', परमेश्वर ने कहा।
‘‘उसने एक हफ्ते भर तक मजदूरी की और तुमने इस काम के लिए रक़म नहीं दी। यह क्या तुम्हारी ग़लती नहीं है?'' न्यायाधिकारी ने पूछा।
‘‘मैंने थोड़े ही कहा कि नहीं दूँगा। इतना ही कहा कि काम पूरा करने पर ही रक़म दूँगा'', परमेश्वर ने कहा।
‘‘इसे पहले जो काम सौंपा था, उसने किया। परंतु अपने वादे के मुताबिक तुमने उसे बोरे भर का चावल नहीं दिया। यह अवश्य ही तुम्हारा अपराध है।'' न्यायाधिकारी ने कहा। बाद वीर से उन्होंने कहा, ‘‘परमेश्वर ने अपने वादे के मुताबिक तुम्हें चावल नहीं दिया। तब तुम्हें कोतवाल को शिकायत करनी थी। उसे डरा-धमका कर तुम चावल का बोरा ले गये। यह तुम्हारा अपराध है। स्वग्राम जाओ और लौटकर उस कुएँ की दीवार बनाना। तब बोरे भर का चावल और दस अशर्फियाँ परमेश्वर से पा सकते हो।''
वीर ने न्यायाधिकारी का यह निर्णय मान लिया। बाद न्यायाधिकारी ने कहा, ‘‘परमेश्वर ‘चोर-चोर' कहकर क्यों चिल्लाया? इन चारों ने सच्चाई जाने बिना वीर को क्यों पीटा? उस अपराध के लिए इन चारों को एक हफ्ते की जेल की सज़ा भुगतनी होगी। यों हर कोई कानून को अपने हाथ में लेने लगेगा, तो न्याय-व्यवस्था अस्तव्यस्त हो जायेगी।'' न्यायाधिकारी का फैसला सुनकर सबने तालियाँ बजायीं।

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