
दुर्भक देश का राजा दुर्मुख गाढ़ी नींद में था। उसे एक विकट अट्टहास सुनायी पड़ा, ‘‘ऐ राजा, हर दिन सूर्योदय देखने की तुम्हारी आदत है। आज शुक्रवार है। परसों इतवार के दिन सूर्योदय के समय तुम्हारी मौत होगी। अगर वह अवधि टल जाए तो तुम्हारी मौत होगी ही नहीं।'' यों एक गंभीर कंठ ध्वनि ने राजा को चेतावनी दी। राजा चौंककर उठ बैठा। उसका सारा शरीर पसीने से सराबोर हो गया। उसने रानी को जगाया और सपने के बारे में बताया। रानी ने राजा को, ढाढ़स बंधाते हुए कहा, ‘‘सपने सपने होते हैं। वे सच नहीं होते। आराम से सो जाइये और सपने को भूल जाइये।''
परंतु, राजा का भय दूर नहीं हुआ। वह चुप नहीं रह सका। उसने तुरंत सेनाधिपति को तथा मंत्री विवेकवर्धन को बुलवाया। उनसे अपने सपने के बारे में बताया। उसने आज्ञा दी कि वे इस विपत्ति से बचने के लिए कोई उपाय ढ़ूँढ़ निकालें।
मंत्री किसी निर्णय पर नहीं आ सका। उसने सोचा कि राजा के सपने में जो बातें सुनाई पड़ीं, अगर वे सच हों तो कुछ भी किया नहीं जा सकता। जो होना है, होकर रहेगा। किन्तु राजा की आज्ञा का उल्लंघन भी किया नहीं जा सकता। कुछ न कुछ अवश्य करना ही होगा। राज पुरोहित और राजवैद्य को बुलवाया। राजा की जन्मकुंडली को फिर से एक और बार ध्यान से देखने के बाद राजपुरोहित ने ग्रहस्थितियों की एक और बार गिनती की और घोषणा की कि राजा सुरक्षित रहेंगे और डरने की कोई बात नहीं है। राजवैद्य ने राजा की नब्ज देखी और विश्वासपूर्वक कहा कि वे बिल्कुल स्वस्थ हैं और उनके मरने का सवाल ही नहीं उठता। इतने में सेनाधिपति ने आकर कहा, ‘‘महाराज, पूरा अंतःपुर ढूंढ़ निकाला। कोई भी दिखायी नहीं पड़ा। नगर की गलियों से गुज़रते हुए कुछ आदमियों को हमने गिरफ्तार किया, जिनपर हमें शंका हुई। बाद में हमें मालूम हुआ कि वे खतरनाक लोग नहीं हैं।''
फिर भी, राजा का मन शांत नहीं हुआ। वह बार-बार मंत्री को सावधान करता रहा कि इतवार के सूर्योदय होने तक कोई दुर्घटना न घटे, जिससे उसकी मौत हो जाने की संभावना है। राजा के भय को दूर करने के लिए मंत्री ने मशहूर भूतवैद्य को बुलवाया। भूतवैद्य ने चौक पूरने का काम किया, उनके बीच आटे से बनी मूर्तियाँ रखीं और विचित्र ध्वनियों को गुंजाते हुए कितनी ही पूजाएँ कीं। फिर कहने लगा, ‘‘महाराज, कोई भी दुष्ट शक्ति आपको छूने का भी साहस नहीं करेगी। निर्भय रहिये।''

फिर भी राजा दिन भर अशांत रहा। क्षण प्रतिक्षण उसका भय बढ़ता गया।
शनिवार के दिन राजा ने कुछ भी खाया-पीया नहीं। वह इसी चिंता के मारे भयभीत था कि कल सूर्योदय के तुरंत बाद उसकी मृत्यु होकर रहेगी। उसने फिर एक और बार मंत्री को बुलवाया, ‘‘घोषणा कर दीजिये कि जो व्यक्ति कल सूर्योदय को रोकेगा, उसे आधा राज्य दे दूँगा।''
यह सुनकर मंत्री स्तंभित रह गया। उसने शांत स्वर में राजा से कहा, ‘‘भला सूर्योदय को कौन रोक सकता है?'' मन ही मन उसे लगा कि प्राण-भीति के कारण राजा की मति भ्रष्ट हो गयी। फिर भी राजा की आज्ञा के अनुसार उसने मुनादी पिटवा दी।
शाम को, ज्ञानशेखर नामक एक युवक राजा के पास आया और बोला, ‘‘महाराज, मैंने आपकी घोषणा सुनी। मैं सूर्योदय को रोकूँगा और आपको मौत के मुँह से बचाऊँगा।''
राजा ने आश्र्चर्य भरे नेत्रों से उसे देखते हुए कहा, ‘‘सूर्योदय को कैसे रोक सकते हो?''
‘‘परंपरा से अपने देश में हम यह करते आ रहे हैं। इस रहस्य भरी विद्या में हम निष्णात हैं। परंतु, आपको एक काम करना होगा।'' युवक ने कहा।
राजा ने बड़ी ही बेचैनी से पूछा, ‘‘कहो, वह काम क्या है?''
‘‘आप कल प्रातःकाल ही जाग जाइये। राजभवन के अपने शयनागार के पूरबी कमरे की खिड़की मात्र खोल रखिये। आकाश की ओर अपनी दृष्टि केंद्रित कीजिये। सूर्योदय आपको दिखायी नहीं पड़ेगा।

‘‘उसी प्रकार घोषणा करवाइये कि नगर की गलियों में जब तक घंटी का नाद सुनायी नहीं पड़ेगा तब तक कोई भी नागरिक अपने घर से बाहर न निकले। अब आप निश्चिंत और आश्वस्त रह सकते हैं।'' यों अभय देकर युवक चला गया। राजा का मन अब थोड़ा हल्का हुआ।
दूसरे दिन सवेरे ही राजा दुर्मुख अपने शयनागार की पूरबी खिड़की के पास बैठ गया और सांस रोककर आकाश की ओर देखता रहा। पूरबी पर्वतों के घने जंगलों से काले-काले मेघों की तरह का गाढ़ा धुआँ आकाश पर छा गया। एक घंटे तक यह धुआँ, जैसे था, वैसे ही छाया रहा। इतने में सूर्योदय का समय भी बीत गया। जब राजा को पक्का विश्वास हो गया कि मृत्यु से बच गया हूँ, अब मेरे प्राण संकट में नहीं हैं तो वह शयनागार से बाहर आया। थोड़ी ही देर में धुआँ ग़ायब हो गया और सूरज भी स्पष्ट दीखने लगा। इसके दूसरे ही क्षण नगर की गलियों में घंटी प्रतिध्वनित हुई और लोग अपने-अपने घरों से बाहर आये। किन्तु, आधे राज्य की मांग पेश करनेवाला ज्ञानशेखर नहीं आया।
केवल मंत्री विवेकवर्धन को ही मालूम था कि ज्ञानशेखर नहीं आयेगा, क्योंकि राजा को बुरे सपने से बचाने के लिए, उसके भय को दूर करने के लिए उसी ने ज्ञानशेखर को राजा के पास भेजा था। और राजा को विश्वास दिलवाया था कि वह सूर्योदय को रोकने की क्षमता रखता है। फिर, हज़ारों विश्वस्त अनुचरों को, हज़ारों बैलगाड़ियों में सूखी घास भरकर पूरबी पर्वतों के जंगलों में भेजा और इस घास पर ठंडा पानी छिडकवाया और सूर्योदय के थोड़े समय पहले उसमें आग लगवायी। इससे धुआँ फैल गया और उस धुएँ में राजा सूरज को देख नहीं पाया। यों मंत्री ने राजा के भय को दूर किया और किसी की जानकारी के बिना राजा की मर्यादा की रक्षा की। अन्यथा लोग राजा की हँसी उड़ाते और उसे डरपोक ठहराते।
मंत्री विवेकवर्धन के इस विवेकपूर्ण कार्य को जितना भी सराहा जाये, कम है।

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