Saturday, July 2, 2011

मुरली का जादू

नुटुंगा स्कूल के हेड मास्टर ने अपनी ऑफिस में दीवार-घड़ी पर नजर डाली। एक बज चुका। लंच ब्रेक का समय। लेकिन उसने घण्टे की आवाज नहीं सुनी। क्या प्यून घण्टा लगाना भूल गया? उसे सन्देह हुआ।
अचानक मुरली की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ी। करीब उसके साथ-साथ ही घण्टे की आवाज आई। बच्चे रिसेस का आनन्द लेने के लिए दौड़कर बाहर आने लगे। कुछेक बच्चे स्कूल के कम्पाउण्ड में एक पेड़ के नीचे एक नौ वर्ष के लड़के को घेरकर खड़े हो गये। वह मुरली बेचनेवाला राधू था।
वह हर रोज लंच के समय स्कूल में आया करता था। वह जैसे ही मुरली बजाना आरम्भ करता, प्यून समझ जाता कि घण्टा बजाने का समय हो गया। उसे घड़ी देखने की जरूरत नहीं पड़ती थी। यह दोनों के लिए आदत बन गई थी।
राधू की मुरली के संगीत के बहुत बच्चे प्रशंसक बन गये थे। कुछेक तो अपना टिफिन भी उसके साथ मिलकर खाने लगे। कुछ अध्यापकों ने इसे पसन्द नहीं किया; जैसे चौथी कक्षा के क्लास टीचर मि.पात्रो। उसे लगा कि मुरली बेचनेवाला अवांछनीय तत्व होने के साथ-साथ बच्चों को खराब भी कर रहा है। उसने हेडमास्टर को शिकायत की।
हेड मास्टर राधू के पास गया और वहाँ एकत्र बच्चों को डॉंटकर क्लास में भेज दिया। फिर राधू को आँखें दिखाते हुए कहा, ‘‘यहाँ से चले जाओ! और स्कूल में फिर कभी नहीं आना!''
राधू कुछ दिनों तक स्कूल नहीं आया। प्यून को उसकी कमी खटकने लगी, हालांकि दोपहर का घण्टा बजाने के लिए वह बहुत सावधानी बरतने लगा। बच्चे उदास हो गये क्योंकि वे अब राधू की मुरली के संगीत से वंचित हो गये थे और हर रोज उसका साथ भी छूट गया था, यद्यपि वह कुछ मिनटों के लिए ही होता था।
एक दिन, मानो कोई चमत्कार हो गया हो, मुरली की चिर परिचित धुन फिर सुनाई पड़ी। साथ-साथ लंच का घण्टा भी बज उठा। बच्चे सीधे राधू की तरफ दौड़ पड़े। आज उसकी बहुत मुरलियाँ बिक गईं। वह बच्चों को मुरली बजाना सिखा भी रहा था।

मि.पात्रो को मुरलीवाले की वापसी अच्छी नहीं लगी। वह हेड मास्टर को बुला कर ले आया। उसे आते देखकर बच्चों की भीड़ तितर-बितर हो गई। कुछ बच्चे अब भी राधू के आस-पास मंडरा रहे थे। हेड मास्टर गुस्से से तमतमाता सीधा राधू के पास गया और बिना कुछ बोले उसके गाल पर कसकर एक तमाचा जड़ दिया। वह कुछ क्षणों के लिए हक्का-बक्का हो गया। उसकी आँखों से आँसुओं की गंगा-जमुना बह पड़ी।
हेड मास्टर घबरा गया। क्या उसने उसे ज्यादा कठोर सजा दे दी! उसने अपना पर्स निकाला और राधू की ओर एक नोट बढ़ा दिया। किन्तु उसने विनयपूर्वक अस्वीकार कर दिया। ‘‘सर, मैं कभी इस स्कूल में तीसरी कक्षा का छात्र था। एक सड़क दुर्घटना में मेरे माता-पिता की अचानक मृत्यु के कारण मेरी पढ़ाई रुक गई क्योंकि अपने माता पिता की मैं एकमात्र सन्तान था, और मेरे परिवार में मेरी देखभाल करनेवाला कोई और नहीं था। मुझे गरीबी का सामना करना पड़ा, इसलिए मैंने मुरली बेचने का फैसला किया। सर, मैं अपने स्कूल को किसी तरह भूल नहीं पा रहा हूँ और यहाँ के बच्चों के साथ दोस्ती करना अच्छा लगता है। इसी आकर्षण के कारण मैं यहॉं खिंचा चला आता हूँ। मैं स्कूल से दूर कैसे रह सकता हूँ! किन्तु यदि आपको ऐसा महसूस होता हो कि मैं आपके लिए एक समस्या हूँ तो मैं चला जाऊँगा। हेड मास्टर राधू की दुखभरी कहानी सुन कर अवाक् रह गया। उसने मि.पात्रो की ओर देखा। वह भी स्तंभित था।
‘‘मुझे खेद है मेरे बच्चे । मुझे क्रोध नहीं करना चाहिये था। मत सोचो कि तुम अनाथ हो। हमलोग तुम्हारी देखभाल करेंगे। तुम्हें अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिये। कल स्कूल में आ जाना। तुम्हें चौथी कक्षा में दाखिला मिल जायेगा।'' हेड मास्टर ने सान्त्वना देते हुए प्यार से राधू को कहा।
दूसरे दिन, प्रातः असेम्बली के समय हेड मास्टर को राधू के पाकेट से एक मुरली झाँकती दिखाई पड़ी। उसने राधू से असेम्बली आरम्भ होने से पहले मुरली पर एक प्रार्थना की धुन बजाने के लिए कहा। वास्तव में, तब से यह दैनिक कार्यक्रम का हिस्सा बन गया।

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