घर के बाहर नम हवा, झूमते निरंकुश और अड़ियल देवदारों को, टेढ़े मेढ़े मार्ग से पार करती हुई, छटपटा रही थी। अन्धेरे में धीमी-धीमी निरन्तर बारिश हो रही थी तथा इसकी बेसुरी आवाज लगता था हड्डियों में रिस रही है। खिड़की के बाहर अन्धकार की एक काली दीवार खड़ी दिखाई पड़ी जो उस पर हिलते हुए भूरे धब्बों से कहीं-कहीं टूटी लग रही थी; ये धब्बे पास के पेड़ों की रूपरेखाएं होंगी।
उसकी दायीं तरफ करीबन सौ फुट पर एक मात्र बिजली के खम्भे की खण्डित रोशनी से आस पास का अन्धकार थोड़ा पीछे हट गया था पर थोड़ी दूर आगे चल कर उसने रोशनी को जैसे पूरी तरह निगल लिया हो। अचानक खिड़की से ठण्ढी हवा के एक झोंके ने आकर उसकी क्षीण काया में कम्पन पैदा कर दिया। बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। मोहन ने मुँह बनाते हुए खिड़की बन्द कर छिटकिनी लगा दी।
उसका कमरा या माँद जैसा कि वह खुद ही कहता था, मात्र 9 फुट लम्बा और 5 फुट चौड़ा था। पलंग रखने के बाद एक छोटी मेज़ और कुर्सी रखने भर जगह थी। मेज़ के ऊपर पुस्तकें, कागज बिखरे पड़े थे- तथा मोटी बड़े आकार की अनाटॉमी की एक पुस्तक आधी खुली रखी थी। और उसके पास ही रखी थी पीली पड़ी दाँत खिसोरे एक मानव खोपड़ी जिसका वह अध्ययन कर रहा था।


एक नये संकल्प के साथ किताब पर एकाग्र होने का उसने प्रयास किया। पर शब्द मानों उसकी नजरों से बच कर भाग जाते। उसकी आँखें मेज पर रखी खोपड़ी की ओर घूम गईं। तुरन्त किसी चीज ने उन गहरे खोखलों से अलग जिनमें कभी विस्मृत अतीत में दो जीवित आँखें रही होंगी उसके सामने एक नया दृष्टि पथ खोल दिया।
इन खोखलों ने हमलोगों की ही तरह कभी प्यार किया होगा, जिन्दगी बिताई होगी। घड़ी की टिक-टिक अचानक कुछ क्षणों में तेज हो गई। और विचित्र बात यह थी कि उसे कमरे में किसी और की मौजूदगी महसूस होने लगी, कोई दूसरी शक्ति जिसे वह कोई नाम न दे सका, एक अलौकिक भय की भावना से वह भर गया।
उसके कानों ने निश्चित रूप से, कहीं कमरे में से ही एक अनजानी आवाज सुनी, उंगलियों से दीवार पर खरोंचने की-सी आवाज। उसने जैसे ही डर-भरी एक निगाह चारों ओर फैलाई, आवाज वैसी ही अचानक बन्द हो गई। नीरवता असह्य होने लगी। उसने आँखें बन्द कर यह सोचा कि आवाज उसकी कल्पना मात्र होगी। उसने किताब बन्द कर सो जाने का निश्चय किया!
तब कुछ ही क्षणों के पश्चात उसने पुनः चारों ओर वही आवाज सुनी, इस बार अधिक स्पष्ट । भय से आक्रान्त हो उसने चारों ओर देखा। ध्यान देने पर उसे पता चला कि आवाज खोपड़ी से ही आ रही है। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। पूरी संकल्प शक्ति लगाने के बावजूद वह अपनी नज़र खोपड़ी पर से हटा नहीं पा रहा था। क्योंकि उसके देखते-देखते खोपड़ी अब मेज पर झटके के साथ गति करने लगी, जब कि दाँत पीसता हुआ उसका डरावना चेहरा उसी पर टिका था। वह इतना डर गया मानों अब उसका दिल फट जायेगा। फिर वह भय से चीखता हुआ बेहोश हो गया।
जब मोहन होश में आया तो उसने अपने आस-पास कुछ जाने-पहचाने चेहरों को देखा। उनमें से एक ने मेज की तरफ इशारा किया जहाँ टूटी खोपड़ी के नीचे एक छोटी मृत चुहिया का भोलाभाला-सा शरीर दबा पड़ा था।
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