कोमन एक गरीब हज्जाम था। वह कडालुण्डी नाम के गाँव का रहनेवाला था जो जैमरिन राजा की राजधानी कोळिकोड के पास ही था। वह घुमन्तु हज्जाम था जो सुबह-सुबह अपने ग्रहकों के घर हजामत बनाने के लिए पहुँच जाता था। आजकल के सैलूनों के विपरीत जिसमें हज्जाम की कैंची और छूरा ग्रहकों के सिर पर या चेहरे पर चलते हुए देखने के लिए चारों ओर दर्पण लगे रहते हैं, कोमन या तो अपने ग्रहकों से ही शीशा माँग लेता था या अपने थैले में से एक छोटा-सा आइना निकालकर उन्हें दे देता था जिसमें वे देख कर तसल्ली कर लेते थे अथवा अन्तिम रूप देने के लिए कुछ निर्देश दे दिया करते थे।


वह उस दिन चुपचाप रह गया। उसने सोचा कि जब वह दो जून खाने भर काफी पैसे कमाकर लौटेगा तब उसकी राय बदल जायेगी। वह अपना थैला उठाकर दोपहर की रोटी लिये बिना चलता बना। उसने कुछ पैसे जरूर कमाये, लेकिन उसे मालूम था कि वे पैसे दो व्यक्तियों के अच्छे भोजन के लिए काफी नहीं होंगे। वह घर लौट गया और कमाई के थोड़े पैसे जो मिले थे उसके हाथ पर रखते हुए मानो बोला कि शाम और कल सुबह तक काम चला लो। गोमती थोड़े-से पैसों को देखकर झल्ला पड़ी, ‘‘गोबर गणेश!''
दिन बीतते गये। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब उसे अपनी पत्नी से कुछ न कुछ ताना सुनना नहीं पड़ता। एक दिन और पत्नी को देने के लिए उसके पास अधिक पैसे नहीं थे। ‘‘बेकार आदमी! हम कैसे जिन्दा बचेंगे, सोचा कभी?'' पत्नी ने फिर खरी-खोटी सुना दी।
उस दिन उससे जवाब दिये बिना रहा नहीं गया। ‘‘मैं कर भी क्या सकता हूँ? तुम मुझे हमेशा बेकार कहा करती हो जैसे मैंने कभी ठीक काम कभी किया ही नहीं या कभी कर भी नहीं सूकंगा।'' उसने अपना थैला एक कोने में फेंक दिया और हाथ-पाँव धोने चला गया।
जब कोमन हाथ-पाँव धोकर कुएं पर से वापस आया, गोमती वहीं खड़ी थी। वह बोली, ‘‘तुम भूखा मरना चाहो तो मरो, लेकिन मेरा इरादा ऐसा नहीं है।''
‘‘यदि तुम अपने को ज़्यादा होशियार समझती हो'', कोमन ने थोड़ा दुखी होकर कहा, ‘‘तब तुम्हीं क्यों नहीं कुछ सोचती?''
‘‘जाकर भीख माँगो'', गोमती ने कहा।
‘‘भीख?'' कोमन ने पूछा। नाई के थैले की बजाय हाथ में भीख का कटोरा लेकर घूमने के विचार मात्र से वह घबरा गया। ‘‘भीख? कहाँ जाकर माँगू?''
‘‘जैमॅरिन के महल में जाओ'', उसने कहा, मानो वह चुनौती दे रही हो। ‘‘उसकी बेटी की जल्दी ही शादी होनेवाली है और मुझे पूरा विश्वास है कि वह हरेक के साथ मेहरबान रहेगा। तुम उससे कुछ माँग लेना।''
कोमन की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने तो राजा से ‘‘कुछ भी'' माँगा था और क्या से क्या मिल गया। उसे एक ऐसी चीज मिल गई थी जिसे मापा और देखा जा सकता था। उसकी खुशी थोड़ी-सी तब मुरझा गई जब उसे वह बंजर ज़मीन दिखाई गई। फिर भी वह ‘कुछ' तो था जिससे अपनी पत्नी का कड़वा मुँह बन्द कर सकता था।
जब वे खेत पर पहुँच गये तब गोमती खेत पर चारों ओर चक्कर लगाने लगी। कभी कोई पत्थर को उलटकर देखती, कभी जमीन पर पाँव पटकती और कभी निराश हो जाती। जब गोमती किसी को पास में आते हुए देखती तब वह भूमि पर बैठ जाती और समय काटने का बहाना करती। कोमन भी वैसा ही करता हालांकि उसे मालूम नहीं था कि ऐसा करने से क्या होगा। जब गोमती ने एक पत्थर उठाकर जमीन में झांका, कोमन ने एक दूसरा पत्थर उठाकर वैसा ही किया। उसने भी कई स्थानों पर पैर पटका और जब गोमती बैठी तब वह भी अपने माथे का पसीना पोंछता हुआ बैठ गया। राहगीर उत्सुकता से यह देखने के लिए कुछ देर रुक जाते और फिर अपनी राह चल पड़ते।
अगली सुबह वह चल पड़ा लेकिन अपने थैले के बिना ही। उसे बहुत दूर पैदल जाना पड़ा। वह सीधे जैमरिन के महल में पहुँचा और राजा से मिलनेवालों की पंक्ति में खड़ा हो गया। जब राजा से मिलने की उसकी बारी आई, तब तक उसने ‘‘कुछ'' माँग लेने का निश्चय कर लिया था, जैसाकि उसकी पत्नी ने उसे सलाह दी थी।
‘‘हज्जाम कोमन!'' महल के परिचर ने आवाज लगाई और उसे राजा के सामने उपस्थित किया गया।
कोमन ने हाथ जोड़कर और झुककर सलाम किया। जब उसने सिर उठाकर राजा की ओर देखा, राजा ने पूछा, ‘‘क्या चाहते हो, कोमन?''
‘‘कुछ भी, महाराज!'' कोमन के मुँह से निकल पड़ा।
‘‘कुछ भी?'' जैमॅरिन ने हैरान होकर पूछा, ‘‘तुम्हारा क्या मतलब है? ठीक-ठीक बताओ।''
‘‘कुछ भी, महाराज!'' कोमन ने हाथ जोड़ कर फिर निवेदन किया।
जैमॅरिन ने क्षण भर सोचा और फिर मंत्री की ओर देखा। मंत्री ने राजा के पास जाकर पूछा, ‘‘क्या आज्ञा है, महाराज?''
राजा ने मंत्री के कान में धीमे से कुछ कहा, ‘‘वह हज्जाम है, राज्य के लोगों की सेवा कर रहा होगा। पाँच एकड़ की वह बंजर भूमि उसे दे दो। देखें, उस पर वह कोई फसल उगाता है या नहीं?''
मंत्री ने राजा की बुद्धि की तारीफ की। जो सिर पर की फसलें काटता है, अब उसे फसल उगानी पड़ेगी! उसने एक परिचर को बुलाकर कहा, ‘‘इस आदमी को महल के पूर्वी भाग में पड़ी उस बंजर भूमि पर ले जाओ।'' फिर वह कोमन से बोला, ‘‘यह आदमी तुम्हें पाँच एकड़ भूमि दिखायेगा। यह राजकुमारी के विवाह के अवसर पर राजा की ओर से भेंट है। वापस आकर बताना कि तुम क्या उगाने जा रहे हो और कितना? अब जाओ और सुखी रहो।''

लेकिन गोमती, आशा के विपरीत, बिलकुल खुश नहीं थी। ‘‘जमीन! और वह भी बंजर !'' वह चिल्लाई। ‘‘हम इसका क्या करेंगे? हमारे पास न हल है, न बैल हैं! फिर हम खेत को कैसे जोतेंगे, कैसे बीज बोयेंगे और फसल कैसे काटेंगे? और तब तक खायेंगे क्या? जैमरिन के पास वापस जाओ और इसके बदले कुछ पैसे माँग लाओ। अभी तो इसी की जरूरत है!''
लेकिन कोमन ने जैमॅरिन के पास दुबारा जाने से मना कर दिया। ‘‘तुम्हें कुछ करने के लिए सोचना होगा'', उसने अपनी पत्नी से कहा।
गोमती ने क्षण भर सोचने के बाद कहा, ‘‘मेरे साथ उस भूमि पर चलो और वहाँ पहुँचने पर ठीक वैसा ही करो जैसा मैं करूँगी'', ऐसा कह कर वह अपने पति के साथ राजा द्वारा भेंट में दी गई बंजर भूमि पर गई।

चार व्यक्तियों के एक गिरोह ने, इन दोनों को बहुत देर तक देखा। उनमें से एक गोमती के पास जाकर बोला, ‘‘इस तपती दुपहरिया में आप क्या कर रही हैं श्रीमती जी? और आप चिन्तित दिखाई पड़ती हैं!''
गोमती ने नजर उठाकर उस आदमी के चेहरे को थोड़ी देर तक गौर से घूरा। उसने ऐसा अभिनय किया मानो उसे सचाई बताने में संकोच हो रहा है। उसने धीमी आवाज में कहा, ‘‘धन्यवाद कि आपने यह सवाल किया। लेकिन यह मैं तभी कहूँगी जब आप वादा करेंगे कि आप इस बात को किसी से नहीं कहेंगे।'' वह थोड़ी देर रुकी। जब उस आदमी ने सिर हिलाया और उसकी धीमी आवाज को सुनने के लिए उसकी ओर कान बढ़ाया, तब वह बोली, ‘‘हमलोग गरीब आदमी हैं; लेकिन हमारे पूर्वज काफी मालदार थे। हमारे परदादा को सोने के घड़ों को इस खेत में गाड़ने की आदत थी, किन्तु वे अब नहीं मिल रहे हैं। खेत काफी बड़ा है और हमें पता नहीं चल रहा कि कहाँ खोदें।''

‘‘यह तो बड़ी दिलचस्प बात है।'' उस आदमी ने अपनी मूँछ ऐंठता हुआ कहा। वह वास्तव में चोर था। ‘‘तुम्हें और तुम्हारे पति को शुभकामनाएँ। मुझे आशा है कि तुम्हें शीघ्र ही खजाना मिल जायेगा।'' वह वापस अपने गिरोह में शामिल हो गया। कुछ दूर जाकर उस पति-पत्नी का राज़ उसने अपने दोस्तों से बताया जो कड़ी धूप में अपनी किस्मत खोज रहे थे।
गोमती तब तक खेत पर ही बैठी रही, जब तक वह आदमी आँखों से ओझल नहीं हो गया। ‘‘चलो, घर लौट चलते हैं। कल फिर आयेंगे।''
जब दूसरे दिन सुबह पति-पत्नी खेत पर आये तब पूरा खेत खोदा हुआ था। शायद उन चोरों ने सोने के घड़ों को पाने की आशा में खेत पर लौट कर यह कठिन श्रम किया होगा।
‘‘देखो, मैंने कैसे पूरे खेत को खुदवाने की तरकीब सोची'', गोमती ने कहा। ‘‘अब हमें बाजार जाकर कुछ बीज खरीदने हैं और उन्हें खेत में बोना है। मैं अब उन दिनों की आशा करने लगी हूँ जब दिन में एक बार नहीं, बल्कि तीनों बार भोजन मिलेगा। तुम्हारा क्या ख्याल है, मेरे बेकार पतिदेव महाराज!''
‘‘शाबाश! मेरी चतुर श्रीमती!'' मुस्कुराता हुआ कोमन बोला।
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